ध्यान क्यों करना चाहिए?

मानव रूप में हमारा यह जन्म बहुत कीमती और अमूल्य है. यह हमारे पिछले कई जन्मों के संचित सकारात्मक कर्मों का फल है, कि हमें मनुष्य के रूप में जन्म मिला है. हालांकि, अपनी संवेदी इच्छाओं से प्रेरित होकर हम माया (भ्रम) के शिकार हो जाते हैं, और जन्म-मरण के अंतहीन चक्र में फंस जाते हैं. जीवन के इन चक्रों के दौरान, इस दुनिया के अधिकांश मनुष्य - शारीरिक, वित्तीय और मनोवैज्ञानिक समस्याओं - सभी के विभिन्न रूपों से पीड़ित रहते हैं. इंसानों का ऐसा प्रबल विश्वास है कि ये कष्ट भगवान ने उन्हें दिये हैं. जबकि सच्चाई यह है कि ये ईश्वर प्रदत्त नहीं हैं. ये सब हमारे पिछले जन्मों में किये गए नकारात्मक कर्मों के द्वारा संचित किये हुए होते हैं. जैसा कि इस संस्कृत कविता में कहा गया है,

पूर्वजन्म कृतं पापं ,
व्याधि रूपेण आपीड्य्ते

अर्थात, "ये हमारे पिछले जन्मों के इकट्ठे किये गए नकारात्मक कर्म हैं, जो इस जन्म में हमें विभिन्न रोगों के रूप में कष्ट दे रहे हैं". प्रकृति की आधारशिला "कर्म सिद्धांत" (कर्म का दर्शन) है. कर्म सिद्धांत के अनुसार, प्रोत्साहन या कष्ट जो कि हर इंसान को मिलते हैं, वे उसके अपने विचारों और कर्मों के द्वारा संचालित होते हैं. इस ब्रह्मांड में हर इकाई अपनी उत्पत्ति के स्थान पर ही अपनी यात्रा समाप्त करती है. इसलिए, हमारे मन में जो कुछ भी विचार (प्यार, नफरत, अच्छा या बुरा) पैदा होते हैं, या हम जो भी कार्य करते हैं, उनके बारे में हमें बहुत सावधान रहना चाहिए, क्योंकि समय बीतने के साथ वही सब कुछ कई गुने बल के साथ हमारे पास निश्चित रूप से वापस आने वाला है. इसलिए, हमारे विचार, शब्द और कर्म हमेशा अत्यंत पवित्रता, दया और प्रेम से परिपूर्ण और हमारे आसपास के लोगों के लिए फायदेमंद होने चाहियें. अब सवाल यह उठता है कि इस तरह की अवस्था को पाने के लिए क्या करना चाहिए? इसका एक ही तरीका है कि हम ईश्वर प्रदत्त ज्ञान का उपयोग करें और अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनें. कर्म के इस दुष्चक्र से खुद को छुटकारा दिलाना बहुत आवश्यक है. भगवद्गीता में भगवान कृष्ण एक शक्तिशाली अंतर्दृष्टि के बारे में बताते हुए कहते हैं,

ज्ञानाग्निदग्धकर्मणाम्

इसका मतलब यह है कि हमारे सारे कर्म परम ज्ञान की आंतरिक अग्नि, जो मनुष्य को जागृत करती है, में नष्ट हो जायेंगे. मनुष्य ध्यान के माध्यम से इस परम ज्ञान का अनुभव करके आत्मज्ञान के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं. ध्यान और आत्मज्ञान की प्राप्ति के बारे में लोगों के बीच कई भ्रांतियां हैं. कुछ को लगता है कि इसके लिए उन्हें अपने परिवारों को छोड़ देना पड़ेगा, और जंगलों, गुफाओं या हिमालय में तपस्या के लिए जाना पड़ेगा, जबकि कुछ को यह केवल बुजुर्गों के लिए उपयुक्त लगता है; कुछ लोगों के ख्याल में ये प्रथायें केवल प्राचीन काल के साधु-संतों के लिए बनाई गई थीं. हालांकि, यहाँ हम यह बताना चाहेंगे कि ध्यान करने के लिए भी आपको कहीं भी जाने की या एक भी पैसा खर्च करने की कोई जरूरत नहीं है और लिंग और उम्र की भी इसमें कोई बाधा नहीं है. साथ ही, हम यह भी बताना चाहेंगे, कि हम में से हर किसी के लिए यह आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना प्राचीन-काल के संतों के लिए था. वर्तमान में हम पृथ्वी पर तीव्र परिवर्तनों के दौर से गुज़र रहे हैं. इस बदलाव के प्रभाव से समय बहुत तीव्र गति से बढ़ रहा है. निश्चित रूप से हम में से हर एक के लिए यह एक महान अवसर है, कि हम ठीक इसी मोड़ पर यहाँ मौजूद हैं. जिसे प्राप्त करने के लिए प्राचीन-काल के संतों को सैकड़ों वर्षों के ध्यान की आवश्यकता पड़ी, उसे अब हम ध्यान के केवल कुछ वर्षों के अभ्यास से प्राप्त कर सकते हैं. अगर हम ध्यान के माध्यम से, एक कदम आगे बढ़ाते हैं, तो भगवान और पवित्र गुरु निश्चित रूप से हमारी ओर दस कदम बढ़ाकर हमें परम ज्ञान और असीम आनन्द प्रदान करेंगे. ध्यान सबसे अच्छा और सबसे ऊँचा आध्यात्मिक पथ है. एक आध्यात्मिक पथ के रूप में ध्यान की महत्ता को निम्नलिखित वैदिक कविता में उद्धृत किया गया है,

प्रथमं विग्रह पूजा ,
जप्स्तोत्रधिमध्यमं,
तृतीयं मानसपूजा
सोऽहं पूजा उत्तमोत्तमं

इसका मूलतः यह मतलब है कि मूर्ति पूजा सबसे बुनियादी पूजा है, इसके बाद मौखिक रूप से मंत्रोच्चारण का स्थान है; इन दोनों से अधिक महत्त्व है, शुद्ध मन से किये गए आंतरिक जप का और सबसे ऊंचा और असरकारक है – ध्यान का अभ्यास.

भगवान कृष्ण उत्तर गीता में कहते हैं,

कोटि पूजा सम स्तोत्रं,
कोटि स्तोत्र समं जपः,
जाप कोटि समं ध्यानं,
ध्यानं कोटि समं लयः

अर्थात,

"एक करोड़ पूजा के गायन एक स्तोत्र के मंगलाचरण के बराबर है, एक करोड़ स्तोत्र के मंगलाचरण एक जप का प्रदर्शन करने के बराबर है, एक करोड़ जप के प्रदर्शन ध्यान की एक बैठक के बराबर है, ध्यान की एक करोड़ बैठकें भगवान के साथ एक होने के बराबर है. "

इसी तरह,

तपस्वी ब्योधिको योगी,
तपस्वी ब्योधिको योगी.
कर्मेभ्यश्चाधिको योगी,
तस्माद् योगी भावार्जुना.

अर्थ, ध्यान, योग या तपस्या सब एक ही हैं.
" तापसी (जो तपस्या करता है) वह है, जो प्रार्थना, त्योहार, व्रत आदि करता है और खुद को शारीरिक / मूर्त पीड़ा देता है;
ज्ञानी वह है जो सभी वेदों, उपनिषदों, पुराणों और महाकाव्यों से पूरी तरह से परिचित है और उनके अध्ययन में डूबा है. अर्थात, वह जो पवित्र साहित्य के माध्यम से शाश्वत सत्य को स्वीकार करता है; कर्म योगी वह है जो यज्ञों, यागा और इससे सम्बंधित अन्य रस्मों और आध्यात्मिक बलिदानों का निष्पादन करता है."
भगवान श्री कृष्ण के अनुसार अनुभव ज्ञान (ध्यान के अनुभव के माध्यम से प्राप्त ज्ञान) तपस्या या पवित्र साहित्य या अनुष्ठान और संबद्ध बलिदानों के ज्ञान के मात्र प्रदर्शन से अधिक गहरा है. केवल ध्यान के माध्यम से ही मनुष्य आध्यात्मिक सत्य के परिप्रेक्ष्य का लाभ उठा सकता है.

"योगः कर्मसु कौशलं " गीता: 2-50

"केवल ध्यान के माध्यम से ही हम अपने सभी दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में दक्षता, सटीकता और प्रवीणता हासिल कर सकते हैं."

"योगोभवतिदुखः" गीता: 6-17

" केवल ध्यान के अभ्यास के माध्यम से ही हमारे दु:खों को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है." एक आम आदमी इस दुनिया में क्यों आया है? यहाँ उसका असली काम क्या है? क्या उसने केवल खाने, पीने या धन एकत्र करने के लिए जन्म लिया है? हमारे जीवन भर के विभिन्न दर्द, नुकसान और कष्टों का क्या कारण है? हम मौत के बाद कहां जाते हैं? हम मौत के बाद क्या करते हैं? जीवन भर में कई सफलताओं को प्राप्त करने के बावजूद क्या ये सब उपलब्धियां हमें मृत्यु से परे शाश्वत सुख दे पाएंगी? शाश्वत आनंद और खुशी की अवस्था के साथ शुरू करने के लिए, ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक आकांक्षा होनी चाहिए. क्यों हमारे विचार हमेशा हमारी शारीरिक इच्छाओं के आसपास केंद्रित रहते हैं? क्यों नहीं हमें अपने शाश्वत आत्मन (आत्मा) के बारे में पता हो सकता है और हम इस पर ध्यान केन्द्रित करते? हमारा जीवन और ज्ञान क्या केवल शारीरिक इच्छाओं को पूरा करने में ही खर्च हो जाएगा? क्या हमें अपनी आत्मा के बारे में जानने की इच्छा नहीं है? हमें इस प्रकार खुद से सवाल करने चाहिए और ध्यान का नियमित अभ्यास करने से हम इन सब सवालों के जवाब पा सकते हैं.

प्रार्थना, उपवास, बलिदान, बाह्य मंत्र जाप (जावक मंत्रों का जाप), भजन (भक्ति गीत का समूह गायन), अंतरंगिक मंत्र जाप (मंत्रों का आवक जाप), पुराणों / आध्यात्मिक पुस्तकों का अध्ययन – ये सभी और चाहे जो भी हों, ध्यान की प्रारंभिक अवस्थाएं और चरण बिलकुल नहीं हैं. हम ऊपर दिए गए इन कार्यों को इस अवधारणा के साथ करते हैं कि हम भगवान से दूर और विलग सत्ताएं हैं. जबकि, ध्यान के माध्यम से हमें भगवान के साथ एकता का अनुभव होता है. ध्यान के माध्यम से हमें समझ आता है कि भगवान वास्तव में हमारे भीतर बसते हैं. ध्यान के माध्यम से ही शाश्वत सत्य के लिए हमारी खोज शुरू होती है. ध्यान के माध्यम से ही हम अनंत ब्रह्मांडीय ऊर्जा हासिल करते हैं; जो मानव की समझ से परे और सभी सांसारिक संपदा से ज्यादा कीमती है. ध्यान के माध्यम से हम गहरे बोध और जानकारी हासिल कर सकते हैं. ध्यान क्रिया का अभ्यास करने वाले व्यक्ति अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों और जिम्मेदारियों को उत्साह, खुशी और पूर्णता के साथ पूरा करेंगे. यह ध्यान ही है, जिसके माध्यम से हम जीवन की उच्चतम अवस्था को हासिल कर सकते हैं. ध्यान हमारे मन और आत्मा को शाश्वत सत्य की ओर ले जाता है. ध्यान में, हम अपने आप को सांसारिक अस्तित्व की मूर्त / शारीरिक अभिव्यक्तियों से ऊपर उठाकर दिव्य अस्तित्व की प्राप्ति की ओर ले जाते हैं. ध्यान एक कीमती उपकरण है, जो हमें ज्यादा स्थिर होने और परेशान करने वाले विचारों की अशांत तरंगों से मुक्त होने में सक्षम बनाता है और हमें स्थायी शांति देता है. ध्यान दुष्ट को सुधारकर पवित्र बना सकता है और शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर को उनकी गहरी ताकत का एहसास करा कर पूरी तरह बदल सकता है.

ध्यान के नियमित अभ्यास के माध्यम से मनुष्य एक सदाचारी और सामंजस्यपूर्ण जीवन यापन का पूरा विस्तार हासिल कर सकते हैं, जैसे - स्वास्थ्य, मानसिक शांति, आपसी समझ, एकाग्रता, स्मृति, सहिष्णुता, सामान्य ज्ञान, वीरता, निरंतर जागरूकता, आत्म विश्वास, आत्म-नियंत्रण, बुरी आदतों से मुक्ति, पवित्रता, संतोष, मानसिक शक्ति, दृढ़ता, स्थिरता, आध्यात्मिक ज्ञान और अनंत परमानंद. ध्यान करने वाला इस पूरी सृष्टि को दया, सहानुभूति, उदारता और प्रेम से भर देता है. ध्यान के माध्यम से आप अवांछित इच्छाओं से सदा के लिए छुटकारा पाकर असीम शांति पा सकते हैं. मनुष्य को जीवन में भावनाओं के चरम अनुभव होते हैं - सफलता की ऊँचाइयों पर गहरी खुशी और विफलता की गहराई में अवसाद. ध्यान धैर्य के साथ इन विविध और अस्थिर अनुभवों के इलाज के लिए आपको सक्षम बनाता है और खुशी और विश्वास के साथ कई मुश्किलों का एक साथ सामना करने की शक्ति प्रदान करता है.