कौशिक बाबू ईश्वरीय उपासक और परंपरा से युक्त परिवार में जन्म लिया जहाँ भगवान कि भक्ति प्रामुख्यता रखती
है। इसलिए स्वाभाविक रूप से भक्ति भावं,भगवान विश्वास उसमें था।इसके अलावा वह
जब छोटा बालक था, तब अनजाने से वह भौंहों (आज्ञा चक्र) के बीच ध्यान केंद्रित करता था। एक अभिनेता
के रूप में, अयप्पा स्वामी के रूप में अभिनय करते समय विशेष रूप से पौराणिक फिल्मों में अभिनय करते हुए,
अक्सर उसके सपने में भगवान अयप्पा की सुनहरी आँखें दिखाई देती थीं। इससे वह हैरान हुआ । हालाँकि
वो किसी भी सामान्य व्यक्ति की तरह देवताओं कि पूजा और यज्ञ की उपासना करने में विश्वास करता था।
वो शक्ति पूजा करने वाले और ऊर्जा क्षेत्रों के बारे में बात करने वाले लोगों को नापसंद करता और संदेह से
देखता था । वह अपने दिल में यह महसूस करता था कि भगवान की शक्ति मंदिर में होनी चाहिए हालांकि
मनुष्य को दैवत्व में जोड़ना मूर्खता है ।
इतनी कम अवधि में गुरु के आशीर्वाद से कौशिक सुषुम्ना क्रिया योगी कि इस स्थिति में कैसे बढ़ सकता
था? कम उम्र से ही वh सोने, चांदी, हरे और लाल रंग के ’आभा’ देख सकता था। वह सोचता था कि शायद
अन्य लोग भी इस आभा को देख सकते हैं।
उसने २०१२ में पहली बार आत्मानमदायी माताजी से मुलाकात की और किसी भी तरह के दैवत्व से सहमत
नहीं हो सका। बाद में माताजी से मिलने का अवसर उसे कयी बार मिला,लेकिन वह तब भी ग्रहण नहीं कर
सका। अब कौशिक बाबू की अद्भुत वर्तमान स्थिति और उसके दिव्य अनुभव, जैसे गुरुओं के दर्शन, के बारे में
सुनकर ,लगता है कि उन समयों के दौरान उसे कोई दैवत्व क्यों नहीं मिली? यह जिज्ञासु प्रश्न है ?! “मुझमें में उस समय परिपक्वता नहीं था। “कहता हैं कौशिक बाबू।
सुषुम्ना क्रिया योग ध्यान प्रक्रिया में वह ऊर्जा है, जिसने उसके चारों ओर माया (भ्रम) को भंग करा। सुषुम्ना
क्रिया योग ध्यान में माया की परतों को घुलाने वाली ऊर्जा है, जो उसे घेरे हुए है। इस ध्यान के साथ ही वह
खोज सकता था कि वह कौन है!
उनकी बहन श्रृता कीर्ति जी ने उनसे गुरुवायुर में क्रिया योग ध्यान प्रक्रिया में दीक्षा दीया। इस तरह उन्होंने
अपनी भाई की सुंदर आध्यात्मिक यात्रा शुरू कर दी। उसकी आंतरिक यात्रा उसी दिन से शुरू हुई। उसने कभी
भी इस प्रकार के अनुभव नहीं किया था ,जबकी वो विभिन्न प्रकार के अन्य साधनों में भाग लेतa था। उसी
रात ध्यान करते समय, उसे महावतार बाबाजी के वज्र शरीर में, खुली भुजाओं से उनके पास आने को कहने
का दृश्य मिला। इससे पहले, ध्यान के अन्य रूपों में, वह केवल आज्ञा (हृदय) चक्र में प्रकाश देख सकता था और
ध्यान में गुरु को देखने के बारे में कुछ भी नहीं जानतa था।
कुछ दिनों के ध्यान साधना में, उसने सभी ऊर्जा निकायों को एक ट्यूब में एक सुनहरी चमक के साथ जोड़ते
देखा। उस समय वह केवल १५ से १६ मिनट तक ही ध्यान कर पाता था।
माताजी की श्रृता कीर्ति के घर जाने के दौरान, ध्यान में कौशिक ने माताजी को एक स्वर्णिम चमक से घिरी
हुई सूक्ष्म स्थिति में देखा। उसने वहां एक ऋषि को भी देखा। उसने सोचा कि वे शायद संत भोगनाथ सिद्ध हो
सकते हैं। इन अनुभवों ने उसे खुशी और भय की मिश्रित भावनाएं दी।
बाद में काशी में गुरु पूर्णिमा यात्रा से ६ से ७ महीने पहले, उसने अपने ध्यान में कई बार लाहरी महाशय को
देखा जो उसे मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ देख रहे थे।लेकिन श्रीयुक्तेश्वर गिरि ने उसे सक्ता से देखा। चूंकि उसने
“एक योगी कि आत्म कथा” किताब नहीं पढ़ी थी,इसलिए वो नहीं समझ पाया कि वे कौन थे?
उन दिनों वह पूरी तरह से ध्यान नहीं कर पा रहा था।
जब उसने माताजी को गुरुओं के दर्शन के बारे में बताया, माताजी ने उत्तर दिया;”क्योंकि वह काशी आ रहा
है, इसलिए उसे दर्शन मिल रहे हैं।” तब तक कौशिक ने काशी जाने का निश्चय नहीं किया था।
वह बहुत क्रोधित और परेशान हुआ कि उसकि यात्रा को ,माताजी क्यों तय कर रही थीं ?!
बाद में कई दिनों तक, उसने इस तरह के विचार पाने के लिए बहुत खेद महसूस किये।
फिर जब वो काशी गया तो उसे बहुत अद्भुत अनुभव हुआ।
अपने ध्यान के दौरान काशी में, गुरु माँ को क्षमा माँगते हुए, अचानक उसने अपने सूक्ष्म शरीर को
अंतरिक्ष में जाते देखा, बाबाजी का लौकिक रूप देखा, फिर माताजी मुस्कुराते हुए चेहरे से पीट पर थपथपा
कर यह कहे कि उसे क्षमा कर दिये, जब उसने श्री लाहरी महाशय को देखा, तो रोते हुए उसने यह कहा कि,
“मुझपर गुरुओं की इतनी कृपा है”वो खुद लाहरि महाशय के घर में , उनके अन्य भक्तों के साथ पाद पूजा करने का दृश्य देख सका।
साथ ही गंगा नदी में स्नान करते समय ध्यान के दौरान उसने देखा कि श्रीयुक्तेश्वर जी और श्री योगानंद जी
आपस में बात कर रहे थे और उसकी ओर इशारा कर रहे थे। उसने श्री रामकृष्ण परमहंस जी को देखा और
स्वयं को श्री विवेकानंद जी के शरीर में देखकर बहुत डर का महसूस किया। एक नरम थपथपा के साथ माताजी
ने उसे वापस उसकी सामान्य अवस्था में पहुँचा दिया। काशी में रहनेवाले उन दिनों के दौरान, उससे हर दिन
माताजी का उनकी सूक्ष्म शरीर में भगवान काशी विश्वनाथ की पूजा करने का दृश्य दिखाई दिया। जब
कौशिक ने इसके बारे में पूछा, माताजी ने पुष्टि की कि यह सच है।
युवा में उसे बौद्ध मठ, बर्फ के पहाड़, पीले फूल और बौद्ध भिक्षुओं के दर्शन मिलते थे। उसने एक ऐसा हॉल
देखा, जहाँ दूध से बना खाना खाया जाता था। वह सोच रहा था, कि गुरुओं कि उच्च स्थिति के कारण शायद
वो वैसे व्यंजनों कि सेवन कर रहे हैं ? वह समझने लगा कि गुरुओं की पूजा और उपवास की स्थिति के
कारण , उन्होंने ऐसा महसूस किया होगा।
वहाँ वह माताजी को छाया के रूप में देखा करता था (उस समय वह माताजी को नहीं जानता था)।
बाद में अनीर्बन, जो एक सुषुम्ना क्रिया योगि हैं ,उन्से बातचीत करते हुए, उसे थोड़ा समझमे आया। बाद में
माताजी मुस्कुराते हुए कहे कि –“ पिछले जन्म में बौद्ध मठ में आप तीनों थे।“
“एक अनीर्बान है, दूसरा राधा है , क्या आप तीसरे व्यक्ति की पहचान सकते हैं? – उन्होंने अनीर्बन से पूछा?
कौशिक यह जानकर चौंक गए कि वो ही तीसरे व्यक्ति है।
काशी में, एक कुत्ता यज्ञ वाटिका (हवन स्थान) में आया था। कौशिक एक स्वयंसेवक होने के कारण, उसने
कुत्ते को पकड़ लिया और उसे दूर ले गया। कुत्ता शिव मंदिर की तरफ भागा और गायब हो गया। बाद में उसे
पता चला कि माताजी के निमंत्रण से, कुत्ते के रूप में काल भैरव स्वामी ने यज्ञ वाटिका का दौरा
किया था। कौशिक ने इसे छुने के लिए धन्य महसूस किया।
जीवन और वम्शी के घर के गृह प्रवेश होने के अवसर पर, उसने भोगनाथ सिद्धार की उपस्थिति महसूस की।
जब वह माताजी से मिलने गया, तो उसे महावतार बाबाजी और भोगनाथ सिदार की उपस्थिति महसूस
हुई। सुषुम्ना क्रिया योगी कौशिक की अद्भुत स्थिति, पिछले जन्म के उसके अद्भुत अनुभव, गुरु की कृपा, गुरु
द्वारा आश्चर्यजनक प्रसंग, सूक्ष्म प्रक्षेपण, सूक्ष्म यात्रा में ऊर्जा चैनल का दिखाना – ये अनुभव अन्य सुषुम्ना क्रिया
योग साधकों के लिए एक गवाही के रूप में खड़े होते हैं, और यह दिखाते हैं कि, हर एक कि अपनी यात्रा में,
उनकि आध्यात्मिक दृष्टिकोण अवाम उनकी उन्नति सच्ची हो सकती है ।