माताजी फिर हमसे हिमालय यात्रा में हुए अन्य कयी अद्भुत अनुभवों को बताने लगीं।“गंगोत्री मंदिर से जब काटेज वापस आकर मैंने फिर आप सभी को काटेज में आने से मना कर दिया, तब फिर से मेरी सूक्ष्म शरीर अपनी भौतिक शरीर में प्रवेश हुई।उसके बाद हम फिर से ध्यान करने गंगा नदी के तट पर गये। मैं नदी में उतरकर उस पर्वत कि ओर देखकर महावतार बाबाजी और उनके ४९ शिष्यों को कृतज्ञता भाव से नमस्कार कर रही थी, जहाँ से महावतार बाबाजी उनके अनुग्रह को प्रसारित कर रहे थे। स्वर्ग से देवता कैसे उतर आते हैं, वैसे अनुभूति मुझे हुई।गौरी शंकर मठ से मुझे नीचे आप सबके पास लाने केलिए,उस पर्वत के आकार जैसा और उसके समानात्व में एक कांति तैयार हुआ। वो कांति चलते- चलते मुझे नीचे उतारी। मुझे ऐसा अनुभव पहली बार हुआ | ” – माताजी हमसे बोले।