माताजी उन गुठलियों के बारे में जानकारी देते हुए कहती हैं कि –“ये आप अपने परिवार के किसी भी सदस्य को न दें।यह गुठली आप ही केलिए प्रत्यक्ष रूप में दिया गया है।आपमें अगर कभी भी अहंकार,ईर्षा, द्वेष का महसूस हो तो,इस गुठली को तीन बार भ्रूमध्य में ठेकें।इतना अद्भुत प्रक्रिया होने पर,आप सभी उस स्थिति से बाहर आकर यथा स्थिति में वापस नहीं आने केलिए आप को यह गुठली दिया गया।
यशी नाम कि एक क्रिया योगी अपनी अनुभव बताई, “माताजी आप जब मौन थे ,आपके साथ कार में प्रयाण करते समय मुझे बहुत आनंद महसूस होने लगा। १५ मिनट अत्यधिक आनंद के कारण मैं फूले नहीं समायी और हँस भी रही थी”।यशी का यह अनुभव गुरु के प्रति सत्भाव के कारण ही हुआ ,कहे माताजी ने।
“गुरूजी के सांगत्य में प्रयाण के समय हमें गुरु से मिले दिव्यानुभूति में अपने को विसर्जित करनी चाहिए। हमें अपनी गुरू कृपा से अर्जित दिव्यानुभूति अपने अंदर नीशिप्त कर लेनी चाहिए। गुरु के द्वारा हमारे पास आए स्पंदन सजीव रह जाना है। जब भाव तरंग अथवा स्पंदन ज्यादा होते हैं, तब हमारी मानव स्थिति से दैव स्थिति कि अभिवृद्धि होती है। आत्मा को विश्व में विलीन होने हेतु, वो भाव तरंगें आत्मा कि सहायक बनते हैं” – यह माताजी ने हमसे कहा।