“बिलकुल हमारे ध्यान दर्शन, के जैसे ही दिखाई देते हैं महावतार बाबाजी।
वह जगह तुलसी के पौधों से सुसज्जित है। वहां के तुलसी का डाल साधारण तुलसी के पौधे से तीन गुणा दुगना बड़ा है। गौरी शंकर मठ का पूरा वातावरण तुलसी के सुरभी से व्याप्त है। शिखर के बाएँ तरफ १२ छोटे गुफा हैं। बाबाजी के ४९ शिष्यों में १२ महिलाएं हैं। वहां महिलाएं हलके गेरुआ और पुरुष गेहुआ रंग के वस्त्र पहने हुए थे। गौरी शंकर मठ में कोई बातें नहीं करते, वे चुप – चाप अपने आँखों के द्वारा एक दूसरे को संदेश भेजते हैं। वहां मौन ही प्रत्येक है। शिखर में, कुंड जैसे जगह से गरम पानी का प्रवाह हो रहा था। जलपात से पानी नीचे कि ओर प्रवाह होता जा रहा था। वहां का पानी बहुत स्वच्छ दिख रहा था। वहाँ छोटे -छोटे पीला और सफेद फूल दिखाई दे रहे थे। बाएं तरफ एक अग्नि कुंड भी था। यहाँ पर तो पक्षियों का चहकना केवल प्रातः काल ही सुनाई देता है। लेकिन गौरी शंकर मठ में रोजा़ना पक्षियों का चहकना सुनाई देता है। उसी तरह जलपात की बहने की आवाज़ निरंतर सुनाई देता है। कुछ ही दूर पर एक तालाब में नीले रंग के कमल खिले थे…