माताजी सबसे हँसते बातें कर रही थी। हम सभी माताजी के समक्ष में बैठे, तब माताजी ने हमको उस प्रदेश कि बहुत सारी विशेषताएं कहीं, जो जन्म जन्मांतर याद रह जाऐंगी। ज्ञान कि प्राप्ति या बुद्धि का विकास गूरू के कृपा से ही पा सकते हैं न! जब तक माताजी ने हमसे कही नहीं, तब तक हिमालय कि यात्र का आध्यात्मिक परमार्थ और उसके आंतरांगिक अर्थ, हमें मालूम नहीं हुआ। माताजी ने हमसे गंगोत्री जाते वक्त मौन में रहने को कहा। मौन माने बिना किसी से बात किये, समझकर हम काफि देर तक निःशब्द रह गये।राह में भोजन केलिए रुके, हम सब खाना खाते,उसके रुचि को आस्वादन करे। मौन का सहीमात्र अर्थ हमें माताजी ने उस दिन बताया। माताजी हमें योगि के लक्षण बताते हुए कहे “एक योगि माने, किसी भी परिस्थिति को संभालने कि मानसिकता होनी चाहिए। आत्मा से समानात्व स्थिति प्राप्त करना ही योग स्थिति है। उस स्थिति कि प्राप्ति का प्रयास करनेवाले योगि को, हमेशा समोभाव में डटे रेहना चाहिए। जब हम किसी दूसरे प्रांत में गए, तब वहां शायद मन-पसंद भोजन न मिल सके, टाइम पर भी हम खा न पायें, योगि को हर स्थिति में अपने आप को संभालना चाहिए। इसी विशय को आप सभी से कहने केलिए मैं कहीं पर भी जल पान नहीं छुयी। आप सभी को कहने से पहले मुझे खुद करना चाहिए न, इसलिए मैंने कहीं खान -पान नहीं किया। हम सब माताजी के इस बात को सुनकर ढंग रह गये।