माताजी के इस स्थिति को देखकर सभी शिष्य अपने आपमें चर्चा कर रहे थे।माता जी अल्पाहार न लेने के कारण कयी ने कुछ खाया नहीं और कुछ सोचने लगे कि माताजी समाधि स्थिति में हैं। कुछ शिष्य माताजी के एकांत स्थिति को भंग न करने कि सोच रहे थे और कुछ इस उलझन कि स्थिति में क्या करना है यह सोच में रह गये। अगले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर हम सबने ध्यान किया। माताजी के साथ हम सभी गंगोत्री मंदिर के लिए निकल पडे।गंगोत्री मंदिर हमारे निवास स्थल से बहुत ऊँचाई में था। राह पर जाते हमें ऊँचे पर्वत और घाटियाँ दिखाई दिये। मंदिर में माताजी के पीछे चलते मौन का अनुसरण करते चले।माताजी ने पहले गंगामय्या के विग्रह का दर्रशन करके नमस्कार अर्पित किया। उसी प्रकार मंदिर के बाएं तरफ,पर्वत के नीचे संगमरमर के फर्श पर माताजी के संग हम सभी शिष्य बैठ गए।
वहां पर हम सभी गोलाकार में बैठे गए। हममे से कुछ लोगों को माताजी को देखते यह महसूस हुआ कि जैसे, माताजी निश्छल स्थिति में शून्य कि तरफ देख रहे हो। माताजी के आँखों में चँद्रमा कि चमक होती है, परंतु उस दिन उनके आँख तीक्षणता में दिखाई दे रहे थे। हम सभी उनके आँखों में शक्ति प्रकंपन्न महसूस कर रहे थे| माताजी के साथ गंगोत्री के तट पर ध्यान प्रारंभ किया। थोड़ी देर धयान में वीलीन होने के बाद हमें भौतिक रूप मे हमारे शरीर कि रीढ़ की हड्डी गरम होते और कुछ सर सर ऊपर चढते हुए अनुभव हुआ। यह अनुभव वहाँ पर सभी को हुआ। माताजी उठकर बहुत तेजी से चलकर कार में बैठ गये।हममें से कोई भी माताजी के इस तेजी से चलने का कारण उनके संग नहीं चल पाए। हम सभी ने उन्में एक नयापन महसूस किया और दुविधा में रह गये कि क्या ये हमारे माताजी ही हैं.