गंगामय्या के प्रवाह के साथ हम चलते गये। अगले दिन सुबह, गंगोत्री के मंदिर जाने के लिए हम रिसोर्ट पहुंचे, जहाँ नदि के तट पर रिसोर्ट है। माताजी हमसे पहले ही वहां पर आ चुकी थी। कुछ आधा घंटे के अंदर हमारा बस भी वहाँ पहुंचा। रिसोर्ट के अंदर जाते ही, जंगलों से घने हरे-भरे सेब के पेड दिखाई दिये, जिन पर सेब के फल लटक रहे थे। भगीरथी नदी का प्रवाह ओंकार कि ध्वनि जैसे सुनाई पड रही थी। वहां पहुंचने से पहले ही माताजी हमें आदेश भेजा। हमसे कहा गया कि उस प्रदेश में सकल देवता गण,ऋषि वर,महातपस्वी इत्यादि, मुख्यतर प्रधम गणाधीश संचारण कर रहे हैं। इस कारण हम सभी को मौन और भाव के साथ रहने का आदेश दिया गया। रिसोर्ट पहुंचने पर हमने माताजी को नहीं देखा। हमें लगा कि माताजी काटेज में ही हैं। हमारे वहां पहुंचने के कुछ ही क्षण में, हमें नज़दीक में एक जगह जाने के लिए बस में बैठने को बोले। सभी बस से निर्धारित जगह पहुंचे। पूरा प्रदेश एकांतमय दिखायी दे रहा था। हम सभी मौन से माताजी के चलन को देखते उनका अनुसरण कर रहे थे। माताजी के चाल में भी बदलाव आया। वे इतने श्रियं और जल्दी चल रहे थे कि ग्रूप में युवा भी उनके साथ चल नही पाए, हमको दौडना ही पडा। हाफते हम माताजी के संग उतल-पुतल कर चलते नदी के तट पर आ पहुंचे। पूरा गिर का प्रांत था। चारों तरफ उँचे -ऊँचे पर्वत दिखे जिनके शिखर आसमान को छू रहे थे। पर्वत हरे भरे थे और कहीं-कहीं मिट्टी का रंग भी दिखाई दिया। हमारे दाहिने तरफ एक सुवर्ण पर्वत दिखाई दिया जिससे हमारी ओर ही गंगा प्रवाह होते दिखाई दे रहा था। हम सब गंगा के तट पर ही ध्यान करने बैठे। उस दिन माताजी ने हमें एक नयी प्रक्रिया सिखाया| हम ध्यान स्थिति में विलीन हो गये। हममे से कुछ जनों को अद्भुत अनुभव भी आए। एक क्रिया योगिनी वंसीजी को एक ऋषि और साडी ओंडी एक लंबी नारी जिनके केश खुले थे, दिखाई दिये।