आकाश गंगा ही भूमि पर पवित्र गंगा कि तरह बेहती है।गंगा मय्या को भू पर लाने केलिए भगीरथ महर्षि ने घोर तपस्या की।
“सर्व पाप नाशिनी,सर्व रोग निवारिणी,
स्वर्ग लोक शोभिनी,दिव्य ज्योति विस्तारिणी,
सरल सुमधुर भाषिनि, दिव्य तरंगिणी-गंगा!”सकल दोशों को उसकी शक्ति से नाश करके,तरल कांति से भूमि को पावन करने, स्वर्ग से धरती पर उतल पुतल कर आयी गंगा।उस पुण्य नदी को, मानवता के श्रेयस केलिए, कठोर तपस से भूमि पर लाये महा पुरुष भगीरथ महर्षि। भगीरथ महर्षि कि तपस से प्रसन्न होकर आकाश गंगा,स्वर्ग के सीमाओं को छोड़कर, भूमि पर आयीं। पुराणों में भी कहा गया कि वह पुण्य नदी के स्पर्श से भूमाता शांत हुई। गंगा मय्या भूमि पर आते हि उसके ओज कि शक्ति से बहुत प्रांत जलपात हुए। गंगा मय्या कि ओज को सिर्फ भगवान शिवजी ही संभाल सकते थे, इसलिए उन्होंने उनके केशो में गंगा मय्या जी को बंद करके, उनके केश के लट से धारा जैसे भूमि पर प्रवाहित किया। ऋषि भगीरथ द्वारा भूमि पर पावन नदी के आने के कारण, गंगामय्या को भगीरथी भी कहा जाता है। उसी भगीरथी नदी के पास हम गये।
सरल सुमधुर भाषिनि, दिव्य तरंगिणी-गंगा!”सकल दोशों को उसकी शक्ति से नाश करके,तरल कांति से भूमि को पावन करने, स्वर्ग से धरती पर उतल पुतल कर आयी गंगा।उस पुण्य नदी को, मानवता के श्रेयस केलिए, कठोर तपस से भूमि पर लाये महा पुरुष भगीरथ महर्षि। भगीरथ महर्षि कि तपस से प्रसन्न होकर आकाश गंगा,स्वर्ग के सीमाओं को छोड़कर, भूमि पर आयीं। पुराणों में भी कहा गया कि वह पुण्य नदी के स्पर्श से भूमाता शांत हुई। गंगा मय्या भूमि पर आते हि उसके ओज कि शक्ति से बहुत प्रांत जलपात हुए। गंगा मय्या कि ओज को सिर्फ भगवान शिवजी ही संभाल सकते थे, इसलिए उन्होंने उनके केशो में गंगा मय्या जी को बंद करके, उनके केश के लट से धारा जैसे भूमि पर प्रवाहित किया। ऋषि भगीरथ द्वारा भूमि पर पावन नदी के आने के कारण, गंगामय्या को भगीरथी भी कहा जाता है। उसी भगीरथी नदी के पास हम गये।