माताजी के पानी का बैग, म्यूल्स पर चले जाने के कारण माताजी को मिनरल पानी खरीद कर दिया गया। मुझे लगा कि इतने जन होने के बावजूद, क्यों हममें से किसी ने माताजी का बाटल नहीं पकडा। माताजी कि सामग्री म्यूल्स पर चढाते समय मुझे लगा कि क्यों न हम उनकी सामग्री पकडें। फिर भी यथार्थ से हमने ऐसा नहीं किया और समान चढा दिया|
हिमालय यात्रा पूरा होने के बाद, इस संघट से संबंधित घटना कि मुझे ध्यान में अनुभूति हुई।
एक दिन ब्रह्ममुहूर्त के वक्त ध्यान करते समय, मेरे आँखों के सामने माताजी और हम सब उनके साथ यमुनोत्री के पर्वत पर चढते हुए, ध्यान में महसूस कर रही थी। अकस्माक मुझे लगा कि माताजी कुछ तकलीफ में हैं। उस समय मुझे एक ध्वनि सुनाई दि “हर पल माताजी, जो साक्षात भगवान हैं, आपको इतना आनंद और प्यार देती हैं, तो आप सब को उनको और कितना आनंदित और संतृष्ट रखना चाहिए?” उस क्षण मुझे महसूस हुआ कि गुरू के साथ यात्रा, पिकनिक नहीं, बल्कि तीर्थ समान मानना चाहिए। मुझे एहसास हुआ कि गुरू के साथ यात्रा करने के योग्य कि खुशनसीबी काफि नहीं, हमे उस अवकाश का सदुपयोग करना चाहिए और बडे ध्यान पूर्वक उन लंहों को बिताना चाहिए।अरण्यवास में, श्री रामचंद्रजी के भाई लक्ष्मणजी उनको गुरू मानकर, उनकी हर पल सेवा करते रहे। उस रोज़ मुझे लगा गुरू के प्रति हमारे भाव वैसी ही होनी चाहिए।