प्रकृति माँ श्यामला देवी के रमणीय विस्तार से ,ऐसे लग रहा था जैसे हमें, क्षेत्र में आने केलिए मां अपनी बच्चों को बुला रहे हो। यह जगह थोड़ी ऊँचाई पर थी। इसलिए चप्पल पहन कर नहीं चढ़ पा रहे थे।| हम सब अपने अपने चप्पल हाथ में पकडकर, एक दूसरे की मदद करते हुए चढ रहे थे।माताजी बडे आसानी से वहां पहुंच गई। हम सब परम
गुरूओं के चित्रों के पास आ पहुंचे।वो जगह जंगलों के बीच थी, और पास मे कोयी नदी के बहने से ,वहां मिट्टी, पत्थर और कीचड भरे थे। माताजी ने हमे गोल आकार में घेरकर बैठने को कहा। हमारे पास कुछ रुमाल और नेपकिन थे ,उन्हे बिछा कर उन पर बैठ गये थे। वहां पहुंचने तक हम नहीं जानते थे कि माताजी ने हमे क्यों वहां पर बुलाए। ध्यान शुरू करने से पहले माताजी ने सबको आँखें खोलने से मना किया। हम सभी के साथ कुछ
प्रमाण करवाये । यह पहली बार थी कि माताजी ने हमसे किसी भी प्रकार के प्रमाण करवाये। “सुषुम्ना क्रिया योग के गुरुओं के प्रति परिपूर्ण भरोसा रखने, हमे दिये गए जिम्मेदारियों को ठीक से निभाने, सभी सह क्रिया योगियों का सम्मान करने,ऐसे काम कभी नहीं करनी जिससे दिव्य बाबाजी सुषुम्ना क्रिया योग फौन्डेश्न के नाम को किसी
भी तरीक़े से नुकसान पहुंचे अथवा जीवन के हर पल को मोक्ष के तप में बिताने के प्रमाण करवायीं “। हमसे कहा गया कि गुरु की प्रक्रिया केवल उन लोगों के लिए की जाएगी जो
मन, वाचन और कर्म से इन सिद्धांतों का पालन करना चाहते हैं। उसके बाद, ध्यान में लीन होते वक्त बहुत तेज हवा चलने लगी। आंखें खोलकर देखने से मना करने कि वजह से, माताजी के आदेश के अनुसार किसी ने भी आँखें नहीं खोली। जो हवा तेजी से चल रही थी ,वह अब शांत होगयी। पूर्ण मौन का माहौल था। ध्यान पूरा होने पर माताजी ने आंखें खोलने को कहा।माताजी उठकर वहाँ के बड़े देवदार के पेड़ों के पास गयीं और ममता पूर्वक अपने कोमल स्पर्श से प्यार जताते हुए ,हाथों से पेडों को छूकर मलने लगे। हमें कुछ समझ नहीं आरहा था। इस बीच, इस क्षेत्र में कुछ अन्य पेड़ थोड़े नीचे कि तरफ थे, और माताजी नीचे घाटियों कि तरफ चल रहे थे, जहाँ कीचड थी और फिसलने कि आकांक्षा भी। दिल ही दिल हमें बहुत घबराहट हुई,कि माताजी कहीं फिसल तो नहीं जाएंगी।
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