शिवरात्रि समारोह में “उपवास” या “व्रत” इसका एक अनूठा हिस्सा है। इसमें आमतौर पर पूरे दिन भोजन से परहेज करना शामिल है जब तक कि खाने का शुभ क्षण नहीं आ जाता। शिवरात्रि (शिव को समर्पित रात) पर मनाया जाने वाला व्रत विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
आइए इस व्रत या “उपवास” के महत्व को समझते हैं। “उपवास” शब्द जो “व्रत” के लिए प्रयोग किया जाता है, दो शब्दों “ऊप” और “वास” से मिलकर बना है। शब्द “ऊप” का अर्थ है “निकट” (से) और “वास” का अर्थ है “निवास करना” शब्द “उपवास” का अर्थ “निकट रहना” हो सकता है, अब सवाल यह है कि “किसके निकट या क्या ?” लोकप्रिय व्याख्या परमात्मा के पास निवास करने की है। इसका अर्थ है कि यदि किसी का ध्यान या जागरूकता परमात्मा पर है तो वह व्यक्ति “उपवास” में माना जाता है। यदि जागरूकता स्थिर है, तो व्यक्ति को लगातार “उपवास” में कहा जाता है। चूँकि किसी के दैनिक जीवन में आध्यात्मिकता के मार्ग का अनुसरण करना चुनौतीपूर्ण होता है क्योंकि जीवात्मा (व्यक्तिगत आत्मा) सभी सांसारिक वस्तुओं के प्रति आकर्षित होती है, इसलिए एक सुषुम्ना क्रिया योगी को मन को एकाग्र ध्यान मे केंद्रित करने में मदद करने के लिए अभ्यास करना चाहिए या खुद पर कुछ प्रतिबंध लगाना चाहिए और उपवास एक ऐसा ही संयम है।
अब आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है कि नियमित उपवास करने से शरीर में विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद मिलती है जो बीमारी का मुख्य कारण हैं। जापानी वैज्ञानिक डॉ. योशिनोरी ओहसुमी का ऑटोफैगी पर नोबेल पुरस्कार विजेता काम बताता है कि उपवास कैसे क्षतिग्रस्त / मृत कोशिकाओं को खा सकता है और शरीर को अच्छी स्थिति में रख सकता है।
हालाँकि हमें उपवास को केवल स्वाद की भावना के स्वैच्छिक संयम तक सीमित नहीं रखना चाहिए। ऐसे उपवास का अर्थ यह है कि उसने भौतिक संसार से अपनी “इंद्रियों” को “वापस ले लिया” या “उपवास” कर लिया है और दिव्य आनंद की “दावत” कर रहा है। इसलिए इसका मतलब यह होगा कि न केवल हम जो खाते हैं, बल्कि जो हम देखते हैं, जो सुनते हैं, आदि के प्रति भी सचेत रहना हैं।
आइए हम सब अब वास्तविक अर्थों में ‘व्रत’ या ‘उपवास’ करें।