श्रीमती श्रीलक्ष्मी, जो एक सॉफ्टवेयर कंपनी में टीम लीडर के रूप में काम करती हैं, एक ऐसी व्यक्ति है जो नियम और शर्तों से भरी सभी प्रक्रियाओं से
दूर रहती है। श्री लक्ष्मी के अद्भुत अनुभव और उसने २०१३ में सुषुम्ना क्रिया योग साधना को शुरू करने के बाद किस तरह के शारीरिक,मानसिक और आध्यात्मिक परिवर्तन का अनुभव किया,जो हर सुषुम्ना क्रिया योगी को निश्चित रूप से प्रेरित करेगा।
ध्यान, आत्मनिरीक्षण – इन दो पहलुओं का अभ्यास करते समय
भक्ति के साथ, श्रीमती श्रीलक्ष्मी ने महसूस किया कि माताजी उसके आंतरिक आत्मा और उसे उसकी आंतरिक चेतना के रूप में उसे निर्देशित कर रहे हैं। धमंड से सब कुछ अपने तरीके से होने कि जिद्द और परेशान होना जब उसके तरीके से नहीं हुआ हो – ये दो उसमें से अब गायब हो गए। हर साल
श्रीमती श्रीलक्ष्मी ने हर किसी को नये साल कि शुभ कामनाएँ देती थी … और वह हमेशा सभी के प्रति प्यार व्यतीत करती थी … एक नए साल पर उसने महसूस किया – “कोई भी मुझे क्यों खुद काँल करके बधाई नहीं देता है?! क्या उन्हें मेरी जरूरत नहीं है?!” ”वह इस वजह से दुखी महसूस करती थी..
लेकिन जब उसकी सहेली ने प्यार भरा फरमान जारी किया कि “ तुम्हें क्या करना है वही करो।
दूसरों से कुछ भी उम्मीद न करो।” उसका मानना है कि गुरुओं ने ही मेरे मित्र के माध्यम से मुझसे इस बात से अवगत कराया है – इस भावना और दृढ़ विश्वास के साथ श्रीमती श्रीलक्ष्मी ने इस लक्ष्य के साथ साधना शुरू करी। वह समझ गई कि इस ध्यान में कुछ है … वह
समझ गयी कि यह आकांक्षी परिवर्तन (बल्कि एक मुश्किल संभावना) बहुत जल्दी आएगा। सिर्फ वही नहीं, यहां तक कि उसके पति भी जिन्हें एक बार सपने में माताजी के दर्शन हुआ वो भी क्रिया योगी में बदल गये। श्रीमती श्रीलक्ष्मी में बहुत अधिक ‘मातृत्व ‘ कि भावना है। यशोदा मय्या जैसे जब श्री श्रीलक्ष्मी ने माताजी को सपने में उसकी गोद में आराम करते देखा तो वह आश्चर्यचकित हो गईं और माताजी से उसी के बारे में पूछा … “हां” करके माताजी ने मुस्कुराते आध्यात्मिक अमृत वाला जवाब उसे दिया।
श्रीमती श्रीलक्ष्मी इस जवाब से बहुत प्रेरित हुई। क्या यह गुरु का
आशीर्वाद है? या यह मेरे तपस्या का फल है? .. वह समझ नहीं पाई।
माताजी ने उनके पति को एक भयानक स्वास्थ्य समस्या से बचाया – पति कि कुंडली के प्रति रूप, उसके पति को जानलेवा खतरा था।उसके पति एक साधारण बीमारी से गुजरने के बाद वो खतरे से दूर हो गये थे।
बिना किसी विपत्ति के,८०% कर्मों का सर्वनाश सुषुम्ना क्रिया योग से हो जाता है–तथापि यह फिर से साबित हुआ कहती है श्रीमती श्रीलक्ष्मी।
उल्लेखनीय है कि उसके पति भी इस बात को समझते थे।
श्रीमती श्रीलक्ष्मी में एक और बड़ा परिवर्तन यह था कि
उसने मंच का – डर पर काबू पा लिया और एक अच्छी सुषुम्ना क्रिया योग शिक्षक बन गयी। श्रीलक्ष्मी ने यह देखा कि इस ध्यान के माध्यम से कई अन्य लोगों मे एक भारी परिवर्तन और साहसी रवैया विकसित हुआ। माताजी के वचन “कर्मसु कौसलाम” श्रीलक्ष्मी ने अनुभव किया। ८ घंटे कि नौकरी ४ घंटे में पूरी करना, काम में तनाव-मुक्त रहना, बिना किसी को तनाव में डाले काम को पूरी करना – ये सब इस ध्यान के परिणाम हैं कहती है श्रीमती श्रीलक्ष्मी।
अन्य क्रिया योगी और माताजी के साथ हिमालय पर जाना एक महान अनुभव था श्रीमती श्रीलक्ष्मी केलिए। किसी ऐसे व्यक्ति जो वास्तव में किसी की परवाह नहीं करती है यह
विशिष्टता है कि उसने बहुत सावधानी से उस यात्रा के उड़ान कि टिकट केलिए बहुत सावधानी से बचत करी। एक ध्यान सत्र में
कृष्णाष्टमी के दिन, उसने भारी ऊर्जा प्रवाह का अनुभव किया …
वो मुद्रा रखी हुई थी,उसे लगा जैसे उसकी हथेलियों में प्रकाश था, और उन्में शंख – दिखाई दे रहे थे,एक वेंकटेश्वर स्वामी जी का श्लोक और उसे २ और श्लोक चमकते और उसके आँखों के सामने स्क्राँल होते देखे…और अंत में स्क्रॉल एक “ओम”….के साथ समाप्त हो गया । वह धीरे-धीरे ध्यान स्थिति से बाहर आयी।
हम में से कई श्रीमती श्रीलक्ष्मी के विचार प्रक्रिया के साथ जुडते हैं… श्रीमती श्रीलक्ष्मी साक्ष्य रूप है कि कैसे एक सामान्य महिला आत्मनिरीक्षण से एक स्वाभाविक सुषुम्ना क्रिया योगी और एक प्यार भरी व्यक्तित्व बनी।
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