सत्या नारायण मूर्ति जी काकीनाडा टाउण ,आंध्र प्रदेश राज्य के निवास करने वाले गुरु माता के एक उत्साही शिष्य हैं। उन्होंने लाइलाज ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया से राहत के लिए दिव्य बाबाजी सुषुम्ना क्रिया योग फाउंडेशन की सेवाओं के लिए अपना जीवन समर्पित करने का आशीर्वाद मिला। मूर्ति जी गुरु माताजी के पास वर्ष २००३ में पहुँचे। २०००-२००१ के आसपास के समय में मूर्ति जी तेज बुखार से बिस्तर पर ही थे,और एक सप्ताह के बुखार के बाद उन्हें अपने चेहरे के दाहिने ओर सनसनी लोप का एहसास हुआ। उन्हें सिर में तीव्र दर्द के साथ, रुक-रुक कर चहरे पर होने वाले झनझनाहट के झटके के साथ उनके चेहरे के दाईं ओर दर्द हो रहा था।
वह दर्द विनाशकारी और असहनीय था। डॉक्टरों ने उनको जांच करके कहा कि वह एक लाइलाज बीमारी से पीड़ित हैं ज्योंकि उनके आयु के वर्गों को नहीं प्रभावित करता और कभी-कभी एटियलजि पर आधारित इसका इलाज नहीं हो सकता। डाँक्टर केवल दवाइयाँ दे सकते थे, जो उन्हें केवल अस्थायी रोगसूचक राहत दे सकता था।
जब वे निर्धारित दवा पर थे, तब भी कई बार वे दर्द निवारक एपिसोड का अनुभव कर रहे थे। दवा ने उनकी जेब पर भी एक बड़ा दबाव डाला, इसलिए उन्होंने आयुर्वेद, होमियोपैथी आदि जैसी वैकल्पिक चिकित्सा कि भी कोशिश की।
लेकिन २ से २ १/२ साल की घातक पीड़ा के बाद … वे भाग्यशाली थे, कि उन्हें हमारे गुरू माता पुज्य श्री आत्मानंदमयी माताजी से मिलने का आशीर्वाद मिला।
उस समय मूर्ति जी अपनी पीड़ा से राहत के अलावा कुछ नहीं चाहते थे। वह याद करते हुए कहते हैं। उन २ से २१/२ वर्षों में कोई भी ऐसा नहीं मिला जो उन्हें स्थायी इलाज की गारंटी दे सका,परंतु गुरू माताजी ने उन्हें पूरे विश्वास के साथ व्यक्त किया कि,वे ठीक होजाएंगे और उन्हें नियमित रूप से ध्यान का अभ्यास करने का सलाह दीया।
विश्वास करने में असमर्थ, मूर्ति जी ने इस बात पर जोर दिया कि क्या ध्यान वास्तव में उन्हें स्थायी इलाज दे सकती है। उस पल में माताजी ने उन्हें कर्म का सिद्धांत समझाया और उन्हें यह बताया कि वर्तमान दुख वो हैं जिसे हमने अतीत से लिए हैं। यह केवल ज्ञानाग्नि है ,जो ध्यान से उत्पन्न होता है जिससे हमें अपने कर्मों से स्थायी राहत देता है। माताजी के कर्म सिद्धांत से सहमत होकर वे ध्यान का अभ्यास करना शुरू किये, और धीरे-धीरे उन्होंने दर्द के उन दर्दनाक प्रकरणों से मुक्ति का अनुभव करने लगे, और ६ महीने के बाद उनके चहरे के एक छोटे से पैची क्षेत्र में सनसनी कम होते महसूस करे ।थोड़े समय में उनको अपने पूरा चहरा का सनसनापन पूरा ठीक होने का अनुभूति होने लगा।
लगभग ६ महीने के बाद उन्होंने एक दिन जब दवा खरीद नहीं पाये और दवाई नहीं ली तो उन्हें आश्चर्य का अनुभव हुआ कि उन्हें दर्द का अनुभव नहीं हुआ,उत्तेजित मूर्ति जी ने सारी दवा बंद कर दी और आश्चर्यजनक रूप से कभी भी किसी भी दर्द का अनुभव नहीं किया और वे पूरी तरह से ठीक हो गये थे और लाइलाज ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया उनके लिए स्थायी रूप से ठीक हो गया था।
ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया एक पुरानी दर्दनाक स्थिति है जो ट्राइजेमिनल तंत्रिका को प्रभावित करती है जो चहरे से सीधे मस्तिष्क तक सनसनी फैलाती है। दर्द हमेशा गंभीर होता है और जलन से लड़खड़ा कर कुछ भी हो सकता है। यह दर्द,गाल के संपर्क में आने से उत्पन्न होता है जैसे कि चेहरा धोते समय, खाना खाते हुए, शेव करते हुए और हवा के संपर्क में आने पर भी खाना, पीना, बातें करना। ये प्रगतिशील है और अक्सर बीच-बीच में थोडा-थोडा करके यह दर्द मुक्तन होता है और दर्द मुक्त अंतराल गायब हो जाता है और दर्द को नियंत्रित करने के लिए दवाएं कम प्रभावी हो जाती हैं।हालांकि विकार घातक नहीं है, यह दुर्बल करने वाला बिमारी है और यह दिन पर दिन जीवन शैली पर प्रभाव पडता है।जब दर्द अधिक गंभीर हो जाता है और दुर्बलता का एहसास होता है तब डॉक्टर भी सर्जरी चिकित्सा प्रक्रियाओं के कुछ प्रतिक्रिया का प्रयास करते हैं, हालांकि यह स्थायी राहत के लिए कोई गारंटी नहीं देगा। समसामयिक सर्जरी की अपनी जटिलताएं हैं और बहुत महंगी भी है।ये मैक्रो सर्जरी तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं जिसमें सिर और गले के नाज़ुक भाग में नस एवं म्यान का छादन पर किया जाए है।
बिना किसी दवा के ध्यान के नियमित अभ्यास ने मूर्ति जी को प्रगतिशील क्रोनिक नॉन-क्यूरेबल ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया से ठीक कर दिया है। चिकित्सा के इतिहास में यह एक चमत्कार है।
मूर्ति जी के चमत्कारी उपचार के लिए गुरु माताजी पूज्यश्री आत्मानंदमयी माताजी के पवित्र चरणों को प्रणाम।
ओम श्री गुरूभ्यो नमः।