जैसे वर्ड्सवर्थ, कृपापूर्वक कविता डैफोडिल्स में व्यक्त करते हैं कि, सार्वभौमिक चेतना खुद को स्पष्ट करती है और इस ब्रह्मांड में प्रत्येक व्यक्ति में खुद को अभिव्यक्त करती है और इस प्रकार सभी चेतना को एक साथ लाती है – इसे केवल एक काव्य अभिव्यक्ति नहीं माना जा सकता है।
जब कि भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं, “मैं सर्वव्यापी हूं, और मैं प्रत्येक और हर कोई में एक मोती के हार के अंदर अदृश्य डोर कि तरह रहता हूँ” – इसे गीता में और एक कविता के रूप में नहीं माना जा सकता है।
यह शब्द संपूर्ण सत्य हैं – ये हमारे गुरुमाता गवाही देते हैं कि सभी सुषुम्ना क्रिया योगी उस सार्वभौमिक प्रेम और चेतना के भाव हैं।
डॉ नागतेजा श्री मधुश्री जी के पुत्र हैं। उसकी माँ जो पूरी तरह से माताजी पर भरोसा करती हैं, उनको पूजती और उनसे प्यार करती हैं, माताजी से विनती करके नाग तेजा को सुषुम्ना क्रिया योग अभ्यास में धकेलें हैं । उस वक्त उसे अद्भुत भावना का अनुभव किया कि माताजी ने उसे गले लगाया, जिसने सुषुम्ना क्रिया योग में उतनी रुचि नहीं रखा जितना कि उसके माँ में था।
उसे माताजी से मिलने और माताजी के साथ १४ मिनट के पहले ध्यान सत्र के महत्व को तुरंत नहीं समझ सका।
जब उसे ६ कॉलेजों में से किसी भी कॉलेज में दाखिला नहीं मिला, तो नागा तेजा निराश हो गया। अचानक उसे उन अन्य कॉलेजों में से एक में सीट मिल गया और यह भी पाता चला कि जिन कॉलेजों ने उसे सीट नहीं दिया , वो काँलेज कुछ घोटाले के कारण बदनाम हुए – जब इस तरह की कुछ परिस्थितियां हुईं तो उसे आश्चर्य हुआ कि क्या इन घटनाओं के पीछे कोई दैवीय हस्तक्षेप था । जब उसे और उसके माँ को, माताजी के साथ हिमालय जाने का अवसर मिला, तो क्या उसे इस योग की विशेषता और माताजी के ऊर्जा जो सभी प्रकृति में व्यापक है उसको समझा।
इससे पहले, अपनी मां के ज़ोर देने पर वह गुरुपूर्णिमा के लिए कोट्रालम गए। जब पूर्णिमा के दिन माताजी ने सभी को २ घंटे ध्यान करने का निर्देश दिया था, तो नागतेजा ने सोचा कि “हे मेरे भगवान!” मैं यह कैसे करुँ? इतने लंबे समय के लिए? ”उसकी आँखों में इस डर के साथ वो बैठ गया कि इतने लोगों के बीच से बाहर निकलना अनुचित होगा। बहुत कम समय के भीतर, उसे एक अलौकिक दुनिया में प्रवेश किया और यह भी महसूस नहीं किया कि दो घंटे बीत चुके थे। यह उसके लिए बहुत आश्चर्यजनक था।
२०१३ में, माताजी के साथ, उन्होंने नींव के लिए प्रचार पहलुओं पर काम करना शुरू कर दिया, और इसके लिए उसे प्रतिदिन ४९ मिनट ध्यान करने की आवश्यकता थी। उसने यह भी देखा कि तब उसका गुस्सा नियंत्रण में था, उसे प्रेरक विचार आने लगे और उसने अपने प्रोफेशनल मंच पर अच्छी वृद्धि हासिल की। इन परिवर्तनों के अलावा, माताजी के साथ हिमालय की यात्रा उसके जीवन में एक बड़ी सफलता थी। सभी सुषुम्ना क्रिया योगी जो साथ गए थे– देवधरु वृक्षों से घिरे एक स्थान पर ध्यान करने के लिए माताजी ने आदेश दिया। संयोग वश, सुषुम्ना क्रिया योगियों की संख्या के बिल्कुल उतने ही समान पेड़ वहाँ पर थे। फिर भी उसे एक देवधरु वृक्ष नहीं मिला जहाँ वह ध्यान कर सके। ऊसे लगा कि माताजी ने उसके कान में कानाफूसी करके उसे निर्देशित करते एहसास हुआ, जब कि माता जी उसे दूर दिखाई दे रहे थे कि २ मुख्य कुंडों के साथ एक देवधरु वृक्ष जो था वो उनमें से एक को पकड कर ध्यान कर सकता है। वह गहरे ध्यान में डूब गया था जैसे कि उसे पेड़ के साथ एक जटिल आध्यात्मिक बंधन होगया हो, बाद में एक आनंद की स्थिति में निमग्न हो गया जहाँ पर उसका पैर भी नीचे की जमीन को महसूस नहीं कर पा रहा था। उसने अपने तीसरे आंख क्षेत्र के अंदर से बाहर कि ओर कुछ खींचा हुआ अनुभव किया… .। एक ‘लगभग समाधि’ स्थिति का अनुभव किया था … वह एक और सुषुम्ना क्रिया योगी के बुलाव कि “माताजी आपको बुला रही है” कि आवाज़ के साथ इस दुनिया में माताजी उसे वापस लायीं ।
यह उसके लिए एक महत्वपूर्ण मैलस्टोन हुआ , जिसके साथ उस समय तक कोई आध्यात्मिक अनुभव नहीं हुआ। उस दिन से लेकर आज तक, उसने खुद को सुषुम्ना क्रिया योग फाउंडेशन के लिए एक समर्थ और आत्म समर्पित स्वयंसेवक में बदले।
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