सुषुम्ना क्रिया योग फाउण्डेशन श्री श्री आत्मानंदमयी माताजी के द्वारा अनुशासन और उत्कृष्ट पर्यवेक्षण के साथ बनाया
गया था। इस फाउंडेशन के लिए सिरीशा जी को सेक्रेटरी के रूप में चुना गया था। कई लोगों को यह जानने की जिज्ञासा
होती है कि वे किस प्रकार की आध्यात्मिक यात्रा में हैं ?! जिसके कारण इस उच्च पद के लिए गुरुओं द्वारा चुने गये हैं
?! कौन सि वजह- विनम्र होना या फाउंडेशन केलिए प्रेम या माताजी के प्रति भक्ति या वित्तीय स्थिरता है – जिससे वे
फाउंडेशन का काम चला पाये ? यह पर्याप्त नहीं है। इस चयन के लिए गुरु ने न केवल उनकी शिक्षा, आध्यात्मिक यात्रा
और उनके अनुभवों को देखा, बल्कि उनके पिछले जन्म में किए गए ऊर्जा कार्यों को भी देखा है।
सुषुम्ना क्रिया योग में प्रवेश करने से पहले वह कैसी थी? सिरीशा जी को बहुत कम ज्ञान था। वह सोचती थी कि,क्या
भक्ति, आध्यात्मिकता और आत्म-साक्षात्कार एक क्रम में होते हैं? युवति होने के कारण वे कई , विलासिता और भौतिक
चीजों के सांसारिक सुखों के लिए आकर्षित थी।
वह, बहुत मासूमियत से सोचती थी कि साईं बाबा उनके द्वारा अर्पित प्रसाद से खुश हैं। जब उन्हें एम्सेट में अच्छी रैंक
मिली, तो उन्होंने १०८ प्रदक्षिण करी, फिर इंजीनियरिंग के लिए १०८ प्रदक्षण और जब उन्हें अच्छे पति मिले,
तो उन्होंने पवित्र साय-सत्चरिता का पारायण करवाया।
बाद में बहुत अच्छे वेतन के साथ ऐ.टी. में नौकरी करने के लिए अमेरिका चले गए।
वे ४ साल तक भारत वापस नहीं लौटे , क्योंकि वे अपनी डॉलर की कमाई को कम नहीं करना चाहती थी। ऐसे
भौतिकवादी व्यक्ति, सिरीशा जी के लिए, इस तरह के अद्भुत परिवर्तन कैसे हुए? कैसे सिरीशा जी “चुनी हुई कुछ लोगों”
में से एक बन गई?
गुरु ही हममें किसी शिष्य के कष्टों और कर्म प्रभावों के सागर को पार करने में मदद कर सकते हैं। वह अपने शब्दों में
कहती है।”मैं एक स्वतंत्र पक्षी की तरह जीवन का आनंद ले रही थी, मेरे बेटे के जन्म से ज़िंदगी की सच्चाई मुझे मालूम
होने लगी ।”
बेटा ठीक से नहीं खा रहा था, उसकि स्वास्थ्य की चिंता ,और उसको किसी के भी साथ न रहने कि इच्छा , इन मुद्दों के
कारण उन्होंने काम करने की स्वतंत्रता खो दी। उनका स्वास्थ्य पर यह सब बहुत प्रभावित हुआ। नींद और भूख से दूर
होते, उन्होंने यह महसूस किया कि उनका पूरा जीवन जैसे कठिनाइयों में खो गया। उन्होंने विभिन्न प्रकार के ध्यान, योग
और रेकी उपचार तकनीकों कि कोशिश की। उपरोक्त में से किसी से भी उनकी स्थिति में सुधार नहीं आया।
यह सच है कि, ऐसी स्थितियों में केवल गुरु ही दुखित और दर्द से भरी आत्माओं को आराम प्रदान कर सकते हैं।
२०११ में गुरुओं की कृपा से उनके चचेरे भाई ने उन्हें सुषुम्ना क्रिया योग से परिचित कराया।
सिरीशा जी विवरणों को उजागर किए बिना कुछ भी स्वीकार नहीं करती थी। उन्हें पता चला कि हजारों वर्षों से क्रिया
योग का इतिहास रहा है। उन्हें सिद्ध परंपराओं का एहसास हुआ, और उन्होंने काया कल्प चिकत्सा के महान संत श्री
भोगनाथ सिद्ध जी के उपचार का नवीकरण किया। उन्होंने अपने आप में बहुत शांति का अनुभव किया और अपने बेटे में
सकारात्मक बदलाव देखा। अपने जीवन में इन सकारात्मक बदलावों के साथ, उन्होंने सुषुम्ना क्रिया योग के प्रति असीम
पसंद और सम्मान विकसित किया।
वे बहुत साहस के साथ है आवां जॉब, स्टेटस और उनके सुंदर घर को छोड़कर ,सबके अच्छाई के लिए भारत वापस आ
गयीं । उनका बेटा जो उन्हें पहले परेशान करता था, ३ महीनों से भारत में रहने के दौरान, उन्होंने देखा कि वह बहुत
सामान्य हो रहा है।
बाद में, उन्हें माताजी से मिलने का आशीर्वाद मिला ,और माताजी ने उन्से कहा कि वे ओंमकर के उच्चारण करें , जिससे वे
विचारों को रोक सके।
जैसे ही उन्होंने ध्यान शुरू किया, आज्ञा चक्र क्षेत्र में, उन्होंने एक ऋषि को, केसरिया वस्त्र में प्रकाश से घिरे हुए
देखा। माताजी ने कहा, वह ऋषि की आयु ३०० वर्ष है और वह उनके लिए ;’गाइडिंग मास्टर में से एक हैं’।
माताजी ने बताया कि हमारे ध्यान कार्य करने केलिए १८०प्राथमिक समर्थकों और ३६०माध्यमिक समर्थकों ने जन्म लिया। जब सिरिषा जी को पता चला कि वह उन १८० प्राथमिक समर्थकों में से एक हैं तब उन्होंने समझा, कि गुरु कृपा कितनी महान है और वह कितनी भाग्यशाली हैं।
पहले वह डरी हुई थी और भाषणों को लेकर आश्वस्त नहीं थी। लेकिन अब वह सुंदर तरीके से कक्षाएं आयोजित करती है
और आसानी से अपने अनुभवों के बारे में बोलती है।
वह अब एक ऐसी स्थिति में है, जहां वह श्री भोगनाथ सिद्ध जी के औमकार का उच्चारण सुन सकती हैं।
अरुणाचलम क्षेत्र में, माताजी ने कहा कि “इस दुनिया में अच्छा और बुरा है। जैसे हंस केवल दूध लेकर पानी को छोड़ देता
है, वैसे केवल अच्छा लेकर, बुरे को छोड़ देना है। व्यावहारिक होते, गतिहीन नहीं होकर , जीवन को चलने दें। जैसे हम
अपने जीवन में खुशियों को स्वीकार करते हैं, हमें कठिन समय को भी उसी तरह अपनाना होगा”।
इन शब्दों ने उन पर जादू की तरह काम किया।
उन्होंने यह एहसास किया कि ध्यान के दौरान हम जो सपने देखते हैं और जो दृश्य हमें दिखाई देते हैं, वे वास्तविक रूप
में हमेशा सही नहीं होते हैं, यह हमारे उप चेतन मन का चाल है, जब तक माताजी पुष्टि नहीं करते कि यह दृश्य सच है,
हमें खयाल रखना चाहिए।
हमारे कर्म सम्बन्धों के कारण, जब बहुत कठिनायों से गुज़रते हैं, तो,हम बहुत ऊर्जा खो देते हैं। बार-बार
उस स्थिति के बारे में सोचने और बात करने से, बार-बार ऊर्जा खोने का अनुभव क्यों करें ? इसलिए कठिनाइयों पर
कोई चर्चा नहीं करनी चाहिए । कोई भी कठिनाई या नुकसान हमारे कर्मगत सामान को कम नहीं करता है। गुरु हमारी
परेशानियों का ख्याल रखेंगे। यही सबक सिरीशा जी ने सीखा है।
माताजी ने सिरीशा जी को दो बार आशीर्वाद दि कि “आप निर्मल”हैं।
कोई भी अच्छा काम ४९ मिनट, ४९ दिनों के ध्यान से पूरा किया जा सकता है। माताजी के इन अमृत भरी शब्दों
को सभी सुषुम्ना क्रिया योगी बहुत सम्मानित करते हैं।
१५५ कुंभ मेले के दौरान १८ सिद्धों ने अथि रुद्र याग के लिए योजना बनाई। कुंभमेला में गुरु अपने सूक्ष्म
रूप में यज्ञ में भाग लेंगे। कौन और कितना? अपनी क्षमता के अनुसार आप गुरुओं की कृपा और ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं।
सिरिशा जी ने माताजी के इन शब्दों को समझा।
कुंभमेला समय के दौरान उन्होंने १२,००० लोगों को सुषुम्ना क्रिया योग का ज्ञान दिया।
इतना ही नहीं, कड़ी मेहनत के साथ उन्होंने अमेरिका के बहुत से लोगों को सुषुम्ना क्रिया योग का ज्ञान दिया। गुरुओं की
अच्छी कृपा के कारण वे नुकसानों और बुरे समय का सामना आसानी से कर सकी थी।
बाबाजी उनके काम से खुश होकर, उनको आशीर्वाद के रूप में, एक सालिग्राम भेंट किया।
सिरिशा जी के सभी परिवार के सदस्य सुषुम्ना क्रिया योगी हैं।
सिरिशा जी के ये सभी अद्भुत अनुभव, उदाहरण हैं, सभी उत्साहित सुषुम्ना क्रिया योगी साधकों के लिए।
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