माताजी हमें यह महत्वपूर्ण विशयों को कहते हुए, हम सभी को याद दिलाये कि अब देरी होने से पहले हम सबको वहां से निकलना है। माताजी हमसे कहने लगे – “परिस्थितियों से पाठ सीखो, किसी भी परिस्थिती को समझकर सही काम करने की सामर्धय और मानसिक परिपक्वता बढने से ही सच्चे योगी बनेंगे | यह बताते समय…
प्रशांतम्मा अमेरिका में एक शिष्य के बारे में प्रस्तावन करे।जब माताजी मौन मेंं थी ,और जल पान लेने से इनकार कर दिये,उस समय समीरा ने प्रशांतम्मा को संदेश भेजा कि “कल के ध्यान में मुझे माताजी बहुत परेशानी में दिखाई देने लगे| माताजी को क्या हुआ? क्या मुझे आप बता सकती हैं…उन्होंने यह संदेश लिख कर भेजा”। वो संदेश देखकर प्रशांतम्मा बहुत रोए। प्रशांतम्मा ने कहा – “माताजी को क्या हुआ,यह मैं जान नहीं पायी। हमारे कारण क्रोधित होकर ,माताजी अल्पाहार नहीं ले रहे होंगे, सोचकर मैंने ध्यान में जयंत अम्मा को बुलाया, तब माताजी थोडी अल्पाहार लेने को मंज़ूर हुयी ” ।
माताजी इसके बारे में और विवरण के साथ कहे…” परिस्थितियों के कारण कौन कैसे रियेक्ट करता है ,शिष्यों के कर्म क्षयण उसी पर निर्भर होता है | आप सब उस परस्थिती को कैसे सपंदन किए यह आप सभी को मालूम है। कहीं हजार मील की दूरी में रहने वाली , समीरा को मेरी स्थिति मालूम हुई, इसका कारण है वो गुरू से संयुक्त
हो चुकी थी। मैं आपके सामने थी फिर भी आप मेरे भाव नहीं जान सके। कयी और विशयों पर हम गुरू पूर्णिमा में चर्चा करेंगे, अब सब चलिए, निकल पडिए ।”
प्रत्यक्ष गुरू केलिए हम जन्म जन्मांतर प्रतीक्षा करते हैं। केवल गुरू के समक्ष ही नहीं, परंतु गुरू के तत्व को भी हमें पहचानना है , हमें इस बात का एहसास हुआ। कयी दिव्य अनुभवों से संपन्न अथवा हमें कयी गुणपाठ सिखाया यह हिमालय यात्रा, हमारे सबके जीवन में एक मधुरानुभव का प्रतीक बन गया।इस पाठ ने हमारे जीवन को एक अनोखी मोड दिया। उस दिन भारी हृदय से माताजी से विदा लेकर, आखों में आँसू झलकते, माताजी के पादों को नमस्कार अर्पित करके, हम सब अपने -अपने घर पहुंचे।