माताजी और कयी आसक्ति विशयों को हमें बताते हुए कहे…”उसी तरह जब माताजी आप सब को ध्यान करवाके, गंगा नदी में से गुठली निकाल कर दे रही थी, तब बाबाजी उनके ४९ शिष्यों के साथ, खासकर षणमुखी माताजी और मैं भी सूक्ष्म रूप में वहां उपस्थित थी। आप के सामने वाले पर्वतों के पास से, बाबाजी आप सभी पर शक्ति प्रसार कर रहे थे। आप सभी जहां पर ध्यान कर रहे थे, वह पूरा प्रांत गोल-गोल फिरने लगा। यह सब मैं सूक्ष्म रूप में बाहर से देख रही थी। ध्यान के बाद जब मेरी शरीर ऊपर की तरफ मुड़ी तो वह मेरी सूक्ष्म रूप की ओर देख रही थी | ” फिर माताजी ने हमसे पुछा -“क्या आप में से कोई यह जान सका कि गुठली क्यों दिया गया?”
कुछ लोग बोले “हम समझे उन्हें रखकर शायद ध्यान करना है”। प्रशांतम्मा कहने लगे – “हम इस गुठली को शिवलिंग समझे”। अन्य कुछ शिव-पार्वती स्वरुप या शालिग्राम का शिला समझे|
कुछ लोग बोले “हम समझे उन्हें रखकर शायद ध्यान करना है”। प्रशांतम्मा कहने लगे – “हम इस गुठली को शिवलिंग समझे”। अन्य कुछ शिव-पार्वती स्वरुप या शालिग्राम का शिला समझे|