गंगोत्री के मंदिर से रिसोर्ट की तरफ सीधे चल पडे। आधे गंठे में अल्पहार लेकर, हम तैयार थे। माताजी एक आधे घंटे तक किसी को दिखाई नहीं दिए। माताजी की बहन प्रशांतम्मा हमसे कही कि “माताजी सभी को अंदर आने से मना कर दिए”। कुछ देर बाद वहां से फिर हमें वहीं ले गये जहाँ पर हमें गुठली दिये गये। फिर से बहुत तेजी से चलते माताजी गंगामय्या में उतरकर हमें भी उतरने को कहे। वो पानी डीप फ्रीज़र पानी जैसे ठंडा था। माताजी बहुत देर पानी में खडे रहकर उनके सामने पर्वतों को देखकर नमस्कार करने लगी। हमारी भौतिक दृष्टि में अनदीखे महा आत्माएं, शायद माताजी की नज़रों को दिख रही थी| यह समझकर हम ने भी अपनी तरफ से ऊपर देखकर नमस्कार की| वहां से हम सब अपने निवास स्थल चले गये। माताजी मौन स्थिति में ही थीं। हम सब अपने समान इकट्ठा करके हरिद्वार निकलने केलिए तैयार हुए।