अपने शिष्यों कि कर्मों का नाश करने कि खातिर गुरुओं कि शहनशीलता का उदाहरण हमें हरशील पहुंचते ही मिला। हम युवा शिष्य अगर थोड़े सावधानी और अकलमंदी से काम किये होते, तो माताजी के बैग हम डोली पर चढाये नहीं होते। माताजी हमें राह दिखाते, हमें आखों का तारा जैसे संवारते, हमें कितने लाड प्यार से देखती हैं | वैसे गुरु पर हमारा आलसीपन हमको शोभा नहीं देता और हमें सावधानी से माताजी कि देखभाल करनी चाहिए करके हम सभी को लगा। हमारे जाने-अनजाने में कि हुई गलतियों का असर जब गुरू पे लगे तो गुस्थाकि माफ नहीं होती है। माताजी हमसे हमेशा कहती हैं, कि गलतियों से हमें सीखनी चाहिए,लेकिन वे कभी भी हमे ये करो, वो मत करो कहके नहीं बताये। माताजी में भूमाता जितना सहनशीलता है। उनके गुरू श्री श्री महावतार बाबाजी और श्री श्री भोगनाथ सिद्ध महर्षि के द्वारा बताए गये हर काम को उन्होंने पूरे श्रद्धा से सुनिश्चित परीपूर्ण किया। माताजी जैसे अपने गुरू के प्रति श्रद्धा दिखाती हैं, वैसे हमे भी अपने गुरू के प्रति पूरे श्रद्धा पूर्व रेहना चाहिए| यह सोच ही रहे थे कि, हमें जल्दी से स्नान करके, भोजन के लिए आने का संदेश आया। उस दिन ज्यादा चढ़ने कि वजह से गरम पानी के स्नान के उपरांत आराम महसूस हुआ।हम सब शिष्य उस दिन भी माताजी के साथ भोजन किये। जब हम सब विश्राम कर रहे थे, मन में माताजी का पाद सेवा करने कि बहुत चाह उठी। माताजी के बहन प्रशांतम्मा कि आज्ञा से श्रृति कीर्ति जी को माताजी के कमरे में जाकर पाद सेवा करने का महाभाग्य हुआ। हमारे कारण इतना कष्ट झेल रहे गुरू के प्रति हमे कितने भक्ति भाव से रेहना चाहिए सोचकर हमें अफसोस हुआ। उस खयाल के थोडी देर में हि मुझे तीव्र नींद आई।