माताजी के साथ थोडी समय के विश्राम के बाद प्रयाण शुरु हुआ। बहुत देर चढाव चलने पर भी
मंदिर कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। हम बहुत ऊपर तक पहुंच चुके थे।वहाँ से नीचे देखने पर एसा
लग रहा था कि हम कहीं भूमी और आसमान के बीच में हैं| एक जगह पर वंसी जी
अत्यधिक थकान से निराश होकर वहीं पर खड़े हो गये| माताजी ने कुछ समय तक उनकी और
देखते हुए अपनी नेत्रोंसे उनको शक्ति प्रसारित किये| कुछ ही देर में वो हिरन जैसे पर्वत पर
चढ़ने लगे| वो खुद अपनी इस स्थिति को देखकर बहुत आश्चर्य हुएे| माताजी युवा टीम के
समान चलने लगे| कुछ पीछे रह गये शिष्यों के आने तक उन्होंने वहां रुकने केलिए कहकर
वे आगे बड़े | थोडी और दूरी पर मंदिर था। हमारी दाएँ तरफ एक पर्वत दिखाई दिया|
वो पूरा पर्वत बर्फ से ढका हुआ था| उस पर्वत पर सप्त ऋषियों का तपस केंद्र है करके
हमारी गाइड ने हमें बताया| उस पर्वत को नमस्कार अर्पित करते ही अदिक्तम शक्ति
प्रकम्पन महसूस होने लगा जैसे पूरा प्रांत हिल रहा हो, वैसा महसूस हुआ। उस प्रांत का प्रति
अनु पवित्र है| गुरु माताजी के चरण के स्पर्श से वह प्रांत और शक्तिमय होगया| माताजी के
उस प्रांत में आते ही यमुना नदी उत्साहित होकर उछल रही थी| वृक्ष आनंदित होने लगे,
माताजी के आने का सन्देश जैसे हवा देने लगा।पर्वत के ऊचाइयों पर चलते गये लेकिन उस
नदी में स्नान नहीं कर पाये।