आध्यात्मिक रूप से, योगानुसार परमात्मा का उत्तम गति पाने वाली यमुनोत्री कि ओर हमारा सफर शुरू करे। यमुनोत्री जाने के लिए उँचे पर्वतों का चढाव करना पडा। पहाड पर चढने केलिए हमें डंडा दिया गया जिसके सहारे हम ऊपर चढ सके। वहां हमेशा अकस्मात का बारिश होता है इसलिए हममें से कुछ लोग जाने से पहले ‘ रेन कोर्टस’ खरीदे।हमारे साथ जो सामग्री हमने लाया वो सब म्यूल्स पर चढा दिया। माताजी के बैगस भी हमने चढा दिया। माताजी पैदल चलने का निश्चय करने के कारण हम सब माताजी के साथ चले। बीच में चट्टानों कि सहायता से आगे बडे| रास्ते पर माताजी के साथ या माताजी के बहन प्रशांतम्मा के साथ ध्यान के अनुभवों के बारे में बातें करते आगे बढे। कुछ दूर जाते हि काले पर्वत दिखाई दिये। यह पहाड़ देवों कि उपस्थिति का एहसास दिलाता है| गिरिसुदन महेश्वर कि श्रृश्टि कि अद्भुतथा वहां के पेडों ,पौधों और झाडियोंकी सौन्दर्यता में प्रकट होता है। अगर भूलोक में ऐसी सौंदर्य हो, तो योग साधन से प्राप्त, उच्च लोकों कि आलौकिक सुंदरता का तो शायद पता भि ना लगे। यहाँ पहाड़ियों के बीच कुछ गुफा दिखाई दिये। हमे लगा कि यही गुफाएं शायद योगियों का निवास स्थान रहा होगा। थोडा आगे जाने पर बर्फ से ढकी पर्वत दिखाई दिया। चाँद जैसे सफेद पर्वत को देखकर,मन पिघल कर मानो यमुना जैसे बेह रही हो। थकान दूर होने तक मार्ग में एक जगह पर रुके। माताजी गरम पानी पीते हैं। माताजी कि सामग्री, हमने म्यूल्स पर रख दिया था और म्यूल्स हमसे बहुत आगे निकल चुके। इस कारण अफसोस से माताजी को समय पर पानी नहीं दे पाये।