नाग तेजा उनके पेड के पास शंका से गये। “माताजी ने हर एक को उनके पेड के पास जाने को कहा, परन्तु मुझे ही क्यों कोई पेड नहीं मिला? क्या मुझे कोयी हक नहीं, पेड पाने का…इस प्रकार के कई सारे प्रश्न मेरे मन मे उठे ” – यह बताया तेजा ने । माताजी के आज्ञा का पालन करते हुए, जैसे ही, तेजा किसी दुसरे वयक्ति के पेड के पास जाकर उसके करम लेने का भाव प्रकट किये, तब अचानक उनको लगा कि उनके पैर के नीचे भूमि अदृश्य हो गया और उनका शरीर आलौकिक सीमाओं को जैसे पार कर गया। एक राकेट जैसै तेज रफतार से वे कहीं जा रहे थे और उनके भ्रूमध्य और पेड के बीच एक सूक्ष्म नाडी कि वजह से उस पेड के साथ एक अनोखे बंधन का एहसास हुआ। उस नाडी कि वजह से उनके अंदर से कुछ भाव बाहर चले जाते हुए महसूस किया और साथ ही उस प्रक्रिया में एक अनोखी शक्ति प्रकंपन्न का महसूस किया। जन्म जन्मों से अज्ञान अंधकार में रहकर जिन कर्मों को उन्हें अनुभव करना चाहिए था, उन दुष्कर्मों को वो मातु वृक्ष ने स्वीकार किया, और तुरंत उन्हें उस पवित्र प्रेम तत्व पेड से जन्मो का लगाव होगया और ऑंखें नमी हो गयी। प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद हम फिर से ध्यान करने बैठे। ध्यान पूर्ण होने पर भी तेजा उनके बाह्य स्थिति में वापस नहीं लौटे। उस पेड के पास खडे होकर आलौकिक आनंद महसूस करते रह गये। एक क्रिया योगी उनके पास जाकर, उनको माता जी के पास लिए और ध्यान करवाने के लिए उन्हें बिठाए|