देहरादून से १०० किलोमीटर की दूरी पर है, तेहरी प्रांत।यमुनोत्री जाने से पहले हम वहां रुक गये। वो पूरा प्रांत प्रकृतिक सौंदर्य से पुलकित है। हमारे रिसोर्ट के नजदीक बडे बडे वृक्ष दिखाई देते हैं।वह एक घने जंगल की तरह था। रिसॉर्ट में, हमे रहने के लिए टेन्टस दिये गये। टेन्टस के अंदर गरम था, परन्तु टेन्टस के बाहर आते ही शीतल पवन का एहसास हुआ। टेन्टस को घेर कर चारों ओर घने वृक्ष थे।ऐसा लग रहा था जैसे हम स्वपनलोक में विहार कर रहे हैं। पास में ही यमुना नदी कि एक धारा की चिल बुली सुनाई दे रही थी। संध्याकाल के समय, अंधेरा होने के पेहले माताजी ने हम सबको, पास वाले जंगल तक साथ चलने का आदेश दिया। वहां पहुंचते ही हमने देखा कि परम गुरू श्री श्री भोगनाथ महर्षि जी एवं श्री श्री महावतार बाबाजी के बडे चित्र वहां पर रखे हुए थे। हमें यह देखकर आश्चर्य होने लगा कि हमारे आने से पहले वहाँ सब व्यवस्था कैसे होगया ।माताजी के वहां पहुंचते ही, वे तुरंत उस प्रांत को छानकर, वहां ७०० साल कि बडे-बडे १५ देवदार वृक्षों को चुने। उन वृक्षों कि छांव में परम गुरू के चित्र, माताजी के बैठने का आसन, मेट्स और ध्यान कि सामग्री कि कुछ शिष्यों ने व्यवस्था की। माताजी का भौतिक रूप में उस स्थान पर आना पहली बार था। उनकी दिव्य दृष्टि से उनको अवगाहन होगया कि परम गुरुओं कि प्रक्रिया करवाने कि यही सबसे अच्छी जगह थी। हम सब माताजी के साथ टेन्टस से पैदल, इस जगह की ओर चलते समय..