उस दिन शाम ४बजे, डी र डी ओ के श्री शंकर किशोर जी ने उनके घर पर माताजी और हम सभी को आमंत्रित किया | कुछ महिला क्रिया योगी, माताजी और उनके बहन के साथ गाड़ी में निकल पडे और कुछ युवा वर्ग जिसमें मैं भी शामिल थी, उनके पीछे पीछे पैदल गये।श्री शंकर किशोर जी का बंगला हमारे निवास स्थान से बहुत ऊचाई पर था।उनके दो मंज़िलों का विल्ला बहुत शांतिपूर्ण वातावरण में स्थित था।घर में प्रवेश होते ही हमें पीने को गरम पानी दिया गया।वहां के ठंडे वातावरण के कारण, अतिथि को गरम पानी दिया जाता है।श्री शंकर किशोर जी, माताजी से कयी विशयों पर चर्चा कर रहीं थी और उसके बाद माताजी लाँन पर पधारे।लाँन के चारों ओर फूल और पौधे सजे थे ।फूलों पर ब्रहमर का गूँजना भी हमने देखा ।उस पल अचानक से मुझे एक कथा याद आयी।एक जगह थी जहाँ पर कमल का तालाब था।तालाब में मेढक कमल के फूल के पास होने के कारण आनंदित हो रहे थे |परंतु वहाँ पर जो ब्रहमर आये,वो मकरंद को महसूस करके, अपनी तृष्णा को भुजा कर चले जा रहे थे।इस कथा से मुझे यह महसूस हुआ, कि यह साधन पाठ में साधक को, केवल कमल रूपी गुरू के सांगत्य में आनंदित ही नहीं रह जाना चाहिए बल्कि, साधक को ब्रहमर जैसे कमल के मकरंद को महसूस करते हैं, वैसे मकरंद समान ज्ञान, गुरू से पाने कि कोशिश करनी चाहिए।जब शिष्य ज्ञानान्वित होते हैं, तब गुरू आनंदित होते हैं।इस कथा कि याद आने से मुझे स्फूर्ति भी मिली।माताजी लाँन पर एक झूले पर बैठी थी। उत्तेजित होकर हम सब उनके चारों ओर बैठ गये| माताजी हमसे कह रही थी कि, हम सब अब ध्यान करेंगे।हिमालयों कि गोदी में, माताजी के पास ध्यान करने का सौभाग्य मिला, इससे मन ही मन एक अनोखी आनंद और तृप्ति महसूस हुई। हम सब मुद्रा में बैठकर ओंकार का उच्चारण प्रारंभ कर दिये।