अगले दिन हम सब अपने कमरों में तैयार होकर पैदल निकलकर ओडिटोरियम पहुंचे।सुबह ६ बजे एक सेशन फिर, ७बजे दूसरा सेशन था।उन सेशन पर आए हुए वैज्ञानिक, श्रद्धा से माताजी के पास दीक्षा लेकर ध्यान संबंधित अनेक प्रश्नों से पूछ- ताछ कर रहे थे।डी र डी ओ में काम करनेवाले, विज्ञान, माताजी के, दीक्षा कार्यक्रम में शामिल हुए।ओडिटोरियम पूरा भर गया।इन दो सेशन्नों में, सुषुम्ना क्रिया योग कि विशिष्टता, दीक्षा, सुषुम्ना क्रिया योग का शास्त्र विज्ञान के संबंधित ज्ञान को पूरा किया गया।माताजी कार्यक्रम पूरा होते ही उनके रूम तक पैदल चलने लगे ।माताजी हमेशा पैदल चलने में बहुत आनंद महसूस करते हैं।प्रकृति शोभा और सौंदर्यता से भरी उन प्रदेशों से मुख्यतर उनको बहुत अच्छा लगा।कुछ लोग माताजी के पीछे चलने लगे।माताजी चलते -चलते उन पर्वतों कि सौंदर्यता को देखते हुए, वहां के रंग-बिरंगे फूल, पौधे को देखकर अत्यधिक आनंदमय हो रहे थे।वहाँ पर एक पुष्प को पकडकर जैसे एक छोटे शिशु को प्यार कर रहे हो, उसको देखकर, मुस्कुराकर वहां से चलने लगे ।हममें से जो भी उनके पीछे चल रहे थे, मन ही मन सोचकर आनंदित हुए कि वो पुष्प कितना खुश नसीब है, कि माताजी के स्पर्श से उसका जीवन धन्य हो गया।उस रोज़ के ध्यान कार्यक्रम खत्म होते ही,माताजी ने सब को विश्राम करने को कहा। शाम को ४बजे तक विश्राम करके हम फिर एक नयी जगह की ओर निकले।