माताजी ने हम सभी को लगभग आधे घंटे में तैयार होने के लिए कहा और अगले दिन के दीक्षा कार्यक्रम पर चर्चा के लिए एक बैठक का आयोजन करवाया। ध्यान शिविर का संचालन करते हुए, माताजी स्वयं, हमें जिम्मेदारियां सौंपते हैं।माताजी हमें समझाते हैं कि, प्रत्येक विषय को विस्तृत तरीके से समझाएं और इसे 100% कुशलतापूर्वक और भाव के साथ करें। बिना भाव के या बिना दृष्टि के, गुरु द्वारा दिए गए कार्यों को करना तलवार से खेलने के बराबर है। हमारी टीम में कई बार अनुभव होता है, छोटी-मोटी गलतियों के कारण बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। गुरु हमें जो काम सौंपते हैं, वह पूरा करने की असमर्थता के कारण नहीं, दिया जाता है, बल्कि शिष्यों के आध्यात्मिक उन्नति के लिए, छोटे कार्य उन्हें सौंपे जाते हैं। जब हम कार्य कर रहे होते हैं, एक गुरु शिष्यों की आध्यात्मिक परिपक्वता का अनुमान लगा सकते हैं। यही कारण है कि हम सभी कार्य भाव से और अपनी क्षमताओं के अनुसार करने का प्रयास करते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि में, जब एक गुरु ईश्वर साकार की स्थिति में हैं, उनके उपस्थिति में हमें बहुत सावधान रहना चाहिए। हमारे माताजी ने हमें इन मूल्यों के बारे में कमांडिंग तरीके से नहीं बताया, बल्कि कुछ अनुभवों ने हमें सबक के रूप में सिखाया। एक गुरु, जो भगवान के बराबर है, कोई भी काम आसानी से कर सकते हैं। लेकिन कर्मों के विनाश के लिए, हमें एक आध्यात्मिक स्थिति तक पहुँचाने के लिए, माताजी ने हमें अपने लौकिक कार्यों का हिस्सा बनाया है। गीता में श्री कृष्ण कहते हैं, यदि गुरु के मार्गदर्शन में, हम अपने धर्म का पालन करते हैं, उसके फल की आशा के बिना, तब हमारी आध्यात्मिक उन्नति केलिए यह एक अच्छा बढावा होगा ।एसे रहना ही एक उत्तम शिष्य का लक्ष्ण है।