‘हिमालय’ .संपूर्ण भूमण्डल में शक्ति प्रसार करनेवाले केंद्र हिमवत पर्वत हैं । परम शिवजी के शिष्य परंपरा से लेकर कयी योगों के निवास स्थल और तपो केंद्र ,हमें आशिर्वाद प्रदान कर रहे हैं यह पर्वत सीमाएं।
भारतीय योग विद्या युग युगों से बाह्य प्रपंच से दूर रहस्यमई गुहाओं में अनेक योग विद्याओं का स्थान भी हिमालय है | इन पर्वतों के सौंदर्य के बारे में जब भी पढ़े या सुने उन्हें देखने की आकांक्षा साधकों को होता है।
मानव जाति कि अभिवृद्धि केलिए परम शिव जी ने यह क्रिया योग विद्या को इन हिमालयो में पारवती देवी , सप्तऋषियों को उपदेश दीये | आधुनिक काल में यह क्रिया योग पहली बार लहरी महासय जी को हिमलयों में ही दिया गया | आज के जीवन कि तेज रफतार से गुज़रते मानवों के लोक कल्याण केलिए , सिद्ध गुरु पूज्यश्री आत्मानंदमयी माताजी ने सुषुम्ना क्रिया योग विज्ञान को हिमालयों से मानवों तक यह क्रिया योग पहुंचाकर हमें ज्ञानावित कर रहें हैं। हमारी मातृ भूमी भारत के आद्यात्मिक सम्पति के रूप में हिमवत पर्वत खड़े होते हैं।
मानव शरीर योग प्रक्रीया एवं साधन द्वारा वज्र रूप में परिवर्तन होकर , रीड की हड्डी जैसे दृढ़ खडे हैं यह पवित्र गिर।
निरंतर आत्मसाधन से,और भगवत गीता ही अपना जीवन गम्य मानकर वे १२ साल से दीक्षा करके सुषुम्ना क्रिया योग कि गृहस्थापनी की पूज्य श्री आत्मा – नंदमयी जी ।वेदों के सारांक्ष को अपने मधुर वाक्य से आध्यात्मिक ज्ञान सुषुम्ना क्रिया योग द्वारा हमें प्रसादित कर रहें हैं, माता आत्मानंदमयी माताजी ।हमारे गुरु मृदु स्वभाव, करुणामय,मधुर हृदय, सामान्य सहित सबको एकमात्र देखने का उनका अच्छा स्वभाव और दिव्य गुण हैं।माता जी के सांगत्य में हम सब साधक परमात्मा का प्रेम स्वरूप देखते हैं।माताजी कि प्रेम भरी दिव्य दृष्टि हमपर प्रसारित होते ही ,कठोर हृदय भी बर्फ जैसे भिगलना ही है।अहंकार से ,अज्ञान से ,प्रेम भरी सत्य को और विश्व प्रेम को नहीं देख पाने वाले हममेसे कयी लोगों को ज्ञान मार्ग में लेआए हमारे गुरु जी।बातों से नहीं बल्कि मौन से ही वे आंतरिक परिवर्तन लाने वाले ज्ञान स्वरूप आत्मानंदमयी माताजी हैं।हर साधक जैसे सुषुम्ना क्रिया योग साधकों को भी हिमालय पर्वतों को देखने की बडी आकांक्षा थी | ‘एक योगि कि आत्म कथा’ , ‘हिमालय गुरुओं कि जीवन’ ,जैसे ग्रंथों जिसने भी पढ़ी हो उन सभी को अपने जीवन काल में एक बार उस प्रांत में जाने कि और महा योगियों को दर्शन करने की चाह होती है |
2016 में पूज्यश्री आत्मानंदमयी माताजी के साथ हिमालय यात्रा में जाने को युवा शिष्यों के सामुहिक और कुछ साधकों को यह अवकाश मिला |
माताजी के साथ हिमालय यात्रा के विवरण कल के भाग में…